विदेशों से जापान आकर काम करने में शायद सबसे ज़्यादा चिंता आपको इस बात की होगी कि जापानी लोगों से बातचीत कैसे करेंगे। देखभाल के काम में भी यही बड़ी चुनौती लगती होगी। यहाँ भी आप विदेशियों के साथ काम करने वाले जापानियों के इंटरव्यू पढ़ सकते हैं।
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आप इंटरव्यू के विडियो भी देख सकते हैं।
यहाँ आप कुछ ऐसे जापानी देखभाल कर्मियों के इंटरव्यू पढ़ सकते हैं जिनके देभखाल केन्द्र में विदेशी भी काम करते हैं। इंटरव्यू के विडियो भी उपलब्ध हैं।
तोकुशिमा प्रिफ़ैक्चर में बांग्लादेश की नूर जी और फैसल जी के साथ काम करने वाले योशिदा जी
इबाराकि प्रिफ़ैक्चर में मंगोलिया के ओगी जी और शुरे जी के साथ काम करने वाले आराइ जी और ईदा जी
नागासाकि प्रिफ़ैक्चर में श्रीलंका की शितमिनी जी और आशिनी जी के साथ काम करने वाले कुबोता जी
इबाराकि प्रिफ़ैक्चर में थाईलैंड की ता जी के साथ काम करने वाले मुराकामि जी
विदेशयों के साथ काम करके क्या अच्छा लगा?
(योशिदा जी) शुरू में उन्हें जापानी भाषा भी ज़्यादा नहीं आती थी और बात समझाना भी मुश्किल था। इसलिए आसान से आसान शब्दों में बात समझाने की कोशिश की। अपने सीखने के तरीके पर बहुत ध्यान देने की वजह से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला।
(आराइ जी) दोनों फुर्तीले हैं, हँसते रहते हैं, कोई गलती हो जाए तो तुरन्त माफ़ी मांग लेते हैं। काम अच्छी तरह करते हैं इसलिए हमें भी साथ में काम करके मज़ा आता है।
(ईदा जी) मुझे भी इनका हँसमुख और मेहनती स्वभाव अच्छा लगता है। काम पर आते ही जब ये लोग ज़ोर से नमस्ते बोलते हैं तो बूढ़े मरीज़ों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है, कहते हैं कि जोशीले बच्चे आ गये। अपने खाली समय में खूब पढ़ाई करते हैं। इन्हें देखकर हमें भी पढ़ने की और अपने काम में सुधार लाने की प्रेरणा मिलती है।
(कुबोता जी) मनोरंजन के समय एक-दूसरे की संस्कृति की बात होती है। मरीज़ भी ध्यान से सारी बातें सुनते हैं।
(मुराकामि जी) हमेशा हँसते-मुस्कुराते रहते हैं इसलिए मुझे भी मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। काम और पढ़ाई दोनों पूरी लगन से करते हैं। इन्हें देखकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
आप विदेशियों से बातचीत कैसे करते हैं और किस बात का खास खयाल रखते हैं?
(योशिदा जी) वैसे तो हम जापानी में ही बात करते हैं, पर कभी-कभी इशारों या अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करने की भी कोशिश करते हैं।
(ईदा जी) हमें भाषा आती है तो हम जल्दी-जल्दी बोल जाते हैं लेकिन कभी-कभी उन्हें समझ नहीं आता इसलिए धीरे-धीरे, हाव-भाव देखते हुए बात करनी चाहिए।
(आराइ जी) जैसे ईदा जी ने बताया धीरे-धीरे बोलना ज़रूरी है। लम्बे वाक्य बोलने पर उनके लिए समझना मुश्किल हो जाता है इसलिए छोटे वाक्यों और आसान शब्दों में बोलना चाहिए। इशारों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। ये ध्यान देना ज़रूरी है कि उन्हें बात समझ आ रही है या नहीं।
(कुबोता जी) धीरे-धीरे बोलें, और मुश्किल या विशेष शब्दों को ठीक से समझाएँ ताकि उन्हें बात समझ आ सके।
(मुराकामि जी) आमतौर पर हम जापानी भाषा में बात करते हैं। चेहरे के हाव-भाव से पता लगाने की कोशिश करते हैं कि बात समझ आ रही है या नहीं। अगर उन्होंने कहा कि समझ गये हैं तो हम प्रश्न पूछ कर देखते हैं कि बात सचमुच समझ आयी है या नहीं। इसके अलावा धीरे-धीरे बोलने पर भी ध्यान देते हैं।
विदेशी कर्मियों के साथ काम या बातचीत करने से जुड़ा कोई खास किस्सा याद हो तो बताएँ?
(योशिदा जी) ये लोग हमें देख कर काम सीखते हैं लेकिन इतनी जल्दी सीख लेते हैं कि हैरानी होती है।
(आराइ जी) जैसा कि मैंने पहले प्रश्न के जवाब में भी कहा था इन्हें सही समय पर आभार प्रकट करना या माफ़ी मांगना आता है। इसी स्वभाव की वजह से हम भी इनके साथ आसानी से काम कर पाते हैं। अच्छी बातें ज़्यादा हैं। हम दिल से आशा करते हैं कि ये यहीं रहें। साथ काम करने में हमें बहुत मज़ा आता है।
(ईदा जी) केन्द्र के दूसरे कर्मियों और मरीज़ों से ये बहुत जोश के साथ मिलते हैं। बात-चीत और हँसी-मज़ाक भी खूब होता है। पूरा माहौल खिल उठता है।
(कुबोता जी) श्रीलंका में करी खायी जाती है इसलिए मनोरंजन के समय एक बार हमने करी बनायी। इन्होंने दाल बनायी जो सब मरीज़ों ने खायी। जापानी लोगों को उस स्वाद की आदत नहीं है लेकिन मुझे याद है कि खाना सबको स्वादिष्ट लगा था।
(मुराकामि जी) सबसे बड़ी बात है कि ये बहुत हँसमुख हैं। मरीज़ों से मिलते समय भी, दूसरे कर्मियों से मिलते समय भी, हमेशा मुस्कुराते रहते हैं।
देखभाल केन्द्र के मरीज़ विदेशी कर्मियों से कैसे बात करते या मिलते-जुलते हैं?
(योशिदा जी) जापानी भाषा सीखने के लिए ये लोग खूब बात करते हैं। कहते हैं कि मरीज़ों और कर्मियों से बात करने में बहुत मज़ा आता है। मरीज़ भी इनसे बात करके खुश हो जाते हैं।
(ईदा जी) हँसमुख हैं, जापानी अच्छी है और मेहनती हैं, यह बात बिलकुल सही है।
(आराइ जी) हाँ, मरीज़ भी समझते हैं कि ये लोग कितनी मेहनत करते हैं इसलिए सब इन्हें मेहनती कहते हैं। ओगी जी और शुरे जी भी यह बात जानते हैं।
(कुबोता जी) शुरू में कुछ मरीज़ों को इनसे डर भी लगता था, पर ये लोग इतने प्यारे हैं कि अब मरीज़ इनके काम पर आने का इंतज़ार करते हैं।
(मुराकामि जी) शिकायत तो कभी नहीं आयी। ये लोग हमेशा अच्छी तरह से सबसे मिलते हैं इसलिए जापानी कर्मी भी निश्चिन्त महसूस करते हैं।