दिन और रात की शिफ़्ट में देखभाल का काम

दिन और रात की शिफ़्ट में देखभाल का काम

जिन देखबाल केन्द्रों में वृद्ध लोग रहते हैं, वहाँ दिन के अलावा रात की शिफ़्ट भी करनी पड़ती है। अगर आपको दिन और रात की शिफ्ट का काम पता है और आप मरीज़ों की तबीयत की खबर रखते हैं तो दिन की हो या रात की आप किसी भी शिफ़्ट में काम कर सकते हैं।

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दिन और रात की शिफ़्ट के काम में अंतर

दिन और रात की शिफ्ट में दो तरह के अंतर हैं – (1) देखभाल कर्मी के काम करने के तरीके में और (2) मरीज़ की तबीयत में। दिन की शिफ़्ट में सुबह से शाम तक 8 घंटे काम करना होता है। जैसे, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक (इसमें लंच का 1 घंटा भी जुड़ा हुआ है)। रात की शिफ़्ट शाम से लेकर अगली सुबह तक लगभग 16 घंटे की होती है। जैसे. शाम 5 बजे से सुबह 9 बजे तक (लगभग दो घंटे के लिए आप हल्की नींद भी ले सकते हैं)।

बहुत से देखभाल केन्द्र रात की शिफ़्ट के अलग पैसे देते हैं। (ये रकम हर देखभाल केन्द्र में थोड़ी अलग हो सकती है।) दिन और रात की शिफ़्ट में कर्मियों की संख्या भी अलग होती है। जैसे, आम तौर पर दिन में 4 लोग और रात को 2 या 1 कर्मी लगभग 30 मरीज़ों की देखभाल करते हैं।

जहाँ तक मरीज़ों की तबीयत की बात आती है तो रात को बहुत से लोग बेचैनी महसूस करते हैं और नींद न आने पर इधर-उधर घूमते भी दिखाई देते हैं।

 

रात की शिफ़्ट का डर

काम करने का समय लम्बा होने और देखभाल कर्मियों की संख्या कम होने के कारण रात की शिफ़्ट करने में डर लग सकता है। अधिकतर देखभाल केन्द्रों में दिन का काम अच्छी तरह से सीखने के बाद ही रात की शिफ़्ट दी जाती है। उसमें भी शुरू में कोई और कर्मी साथ होता है। इस से आपको अनुभवी देखभाल कर्मी के साथ काम सीखने का मौका मिलता है। जब तक आदत न पड़े आप मदद ले सकते हैं।

 

मरीज़ की तबीयत अचानक खराब होने पर

शारीरिक शक्ति कम होने के कारण बुज़ुर्गों की तबीयत अचानक खराब हो सकती है। ज़्यादातर देखभाल केन्द्रों में दिन में नर्सें होती हैं इसलिए आप तुरन्त उनकी सहायता ले सकते हैं।

रात को अगर नर्स न भी हो तो आप फ़ोन पर नर्स से सलाह कर सकते हैं। बहुत से देखभाल केन्द्र अस्पतालों से भी जुड़े रहते हैं इसलिए ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर की मदद लेना भी संभव है।